सर्दी का सितम
सड़क पर रेंगते वाहनों की तरह मंद मंद सरक रही है जिंदगी
गुरविन्दर मितवा
गुहला चीका, 21 दिसंबर
सर्दियों की सुबह वैसे भी बड़ी देर से जवान होती है पर यदि धुंध भी पड़ी हो पता ही नहीं चलता कि कब दिन चढ़ा और कब ढल गया। इतवार को यही हुआ। आज भी सूर्य देवता नहीं दिखे। सड़कों पर लगभग रेंगने की सी गति में चलते वाहनों की मानिंद जिंदगी भी मंद मंद सरकती सी नजर आई। लोगों ने घड़ी की छोटी बड़ी सुइयां देखकर ही अनुमान लगाया कि दोपहर हो गई है। शाम हो गई है। रही बात रात की तो रात किन्हीं घड़ी की सुइयों का मोहताज नहीं होती। अंधेरा अपने आप रात की आमद की दस्तक दे देता है।
गुहला चीका की शामनुमा दोपहर को शहर का चक्कर लगाया तो सर्दी को लेकर अखबारों में छपी और शहरों की खबरें अपनी सी लगी। 'भयंकर सर्दी में जमी जिंदगी', 'ठिठुरन ने रोकी जीवन की रफ्तार', 'सर्दी के कारण बाजारों की रौनक गायब'-इस तरह की कितनी ही सुर्खियां एक हफ्ते से अखबारों में छाई हैं। पटियाला रोड पर जहां पटियाला समाना जाने वाले बसें खड़ी होती हैं, आग सेंक रहे लोगों से जब इस विषय पर चर्चा हुई तो शोकी लाला बोल पड़ा-तनैं कौन कैह बाजारां की रौनक गायब। जाकै देख ना बुद्धु के ठेके पै। शाम लाल की रेहड़ी पै। जर्सियां आली दकान पै।
वाकई बुद्धु के शराब के ठेके पर रश खूब था। सड़क की दूसरी ओर लगी शाम लाल की अंडो की रेहड़ी पर भी खूब भीड़ लगी थी। पास की एक दूसरी रेहड़ी पर जिंदु मछली वाला हर आने वाले ग्राहक से पूछ रहा था-केहड़ी बनावा भाई साब..मली के संघाड़ा या फेर लोकल मच्छी। गुहला रोड पर मिठाई की दुकानों पर भी पकौड़ों की खुशबुएं उठ रही थी। गिरनार स्वीटस वाले नरेश कुमार बताने लगे कि आज कल पकौड़ों का सीजन है। सर्दी में तीखा अच्छा लगता है इसलिए लोग बैंगन, गोभी व आलू के पकौड़ों के साथ साथ साबुत मिर्च वाले पकौड़ों की मांग खास तौर करते हैं।
शहर भर में सड़कों के किनारे जमीन पर तपड़ी बिछाकर मूंगफली रेवड़ी गजक बेच रहे यूपी व बिहार के फड़ी वालों की दुकानदारी भी खूब चमक रही है। शहर में रोजाना हजारों रूपए की मूंगफली व सूखे मेवे बिक रहे हैं। मुनक्के, खजूर व छुआरे तो रेहडिय़ों पर बिक रहे हैं जबकि काजू बादाम जैसे महंगे मेवे मिठाई व किराना की दुकानों पर मिलते हैं। छोटी मंडी के एक दुकानदार ने बताया कि छुआरा सस्ता भी है और सर्दी में बड़ा फायदेमंद भी होता है इसलिए सबसे ज्यादा छुआरों की सेल हो रही है। गुहला रोड की सब्जी की दुकानों पर विदेशी खजूर की खूब धूम है। महंगा है पर लोग स्वाद के चक्कर में महंगाई पर कोई ध्यान नहीं देते।
छोटी मंडी वाले बाजार का रूख किया तो किराने की ज्यादातर दुकानें बंद मिली। जो खुली थी उन पर भीड़ ना के बराबर थी। रेडीमेड गारमेंट वालों तकरीबन सभी दुकानों पर खूब लोग जुटे थे। किसी को गर्म जर्सी चाहिए। किसी को टोपी तो किसी को सर्दी में भी गर्मी के अहसास वाला थर्मोकोट।
मफलर की ज्यादा सेल नहीं
एक दुकानदार के नौकर से मंकी कैप के बारे में पूछा तो बोला कैसी मंकी कैप। जब उसे समझाया कि जैसी पुरानी भूतहा फिल्मों में लालटेन लिए चौकीदार ने पहनी होती थी। सिर से लेकर गर्दन तक की टोपी बीच में आंखों, नाक और मुंह के लिए थोड़े से खुले स्थान वाली टोपी। चर्चा सुनकर दुकान का मालिक पास आ गया और बोला कि बड़ों के साइज की तो नहीं है जी। बच्चों के साइज की पड़ी हैं। कहो तो दिखा दूं। एक दूसरी दुकान पर वैसे ही पूछ लिया कि मफलरों की कितनी कू सेल है इस बार तो दुकानदार ने बताया कि ज्यादा नहीं है। पिछले सीजन में जब केजरीवाल हिट हुए थे मफलर फैशन हो गया था। इस बार मफलर की कोई खास डिमांड नहीं है।
सोशल मीडिया पर छाई सर्दी
हुड्डा कालोनी नंबर एक की एक बेकरी शॉप पर खड़े नौजवानों से बात की तो उन्होंने बताया कि आज कल फेस बुक व व्हाट्सएप आदि पर सर्दी के ही चर्चे हैं। एक स्टेटस अपडेट देखिए 'दोस्तो आज समय है...रजाई का आविष्कार करने वाली महान आत्मा को शत शत नमन करने का। कसम से कमाल की चीज बनाई है।' एक फोटो व्हाट्सएप के गु्रपों में काफी घूम रही है जिसमें एक छोटा सा सरदार बच्चा हाथ जोड़कर आंखें बंद करके विनती करता नजर आता है। फोटो पर लिखा है कि बाबा जी...एसी थोड़ा स्लो करदो, थल्ले बच्चयां नूं बहुत ठंड लग रही ए।
एक सीरियस स्टेटस ये भी खूब शेअर हो रहा है-'आज जिन्हें टीवी पर पेशावर कांड देखकर इंसानियत याद आ रही है न, वे अपनी गली के बाहर सोते भीख मांगने वाले बच्चे को एक कंबल जरूर देकर आएं....सिर्फ आतंकवाद से ही लोग नहीं मरते।'
सड़क पर रेंगते वाहनों की तरह मंद मंद सरक रही है जिंदगी
गुरविन्दर मितवा
गुहला चीका, 21 दिसंबर
सर्दियों की सुबह वैसे भी बड़ी देर से जवान होती है पर यदि धुंध भी पड़ी हो पता ही नहीं चलता कि कब दिन चढ़ा और कब ढल गया। इतवार को यही हुआ। आज भी सूर्य देवता नहीं दिखे। सड़कों पर लगभग रेंगने की सी गति में चलते वाहनों की मानिंद जिंदगी भी मंद मंद सरकती सी नजर आई। लोगों ने घड़ी की छोटी बड़ी सुइयां देखकर ही अनुमान लगाया कि दोपहर हो गई है। शाम हो गई है। रही बात रात की तो रात किन्हीं घड़ी की सुइयों का मोहताज नहीं होती। अंधेरा अपने आप रात की आमद की दस्तक दे देता है।
गुहला चीका की शामनुमा दोपहर को शहर का चक्कर लगाया तो सर्दी को लेकर अखबारों में छपी और शहरों की खबरें अपनी सी लगी। 'भयंकर सर्दी में जमी जिंदगी', 'ठिठुरन ने रोकी जीवन की रफ्तार', 'सर्दी के कारण बाजारों की रौनक गायब'-इस तरह की कितनी ही सुर्खियां एक हफ्ते से अखबारों में छाई हैं। पटियाला रोड पर जहां पटियाला समाना जाने वाले बसें खड़ी होती हैं, आग सेंक रहे लोगों से जब इस विषय पर चर्चा हुई तो शोकी लाला बोल पड़ा-तनैं कौन कैह बाजारां की रौनक गायब। जाकै देख ना बुद्धु के ठेके पै। शाम लाल की रेहड़ी पै। जर्सियां आली दकान पै।
वाकई बुद्धु के शराब के ठेके पर रश खूब था। सड़क की दूसरी ओर लगी शाम लाल की अंडो की रेहड़ी पर भी खूब भीड़ लगी थी। पास की एक दूसरी रेहड़ी पर जिंदु मछली वाला हर आने वाले ग्राहक से पूछ रहा था-केहड़ी बनावा भाई साब..मली के संघाड़ा या फेर लोकल मच्छी। गुहला रोड पर मिठाई की दुकानों पर भी पकौड़ों की खुशबुएं उठ रही थी। गिरनार स्वीटस वाले नरेश कुमार बताने लगे कि आज कल पकौड़ों का सीजन है। सर्दी में तीखा अच्छा लगता है इसलिए लोग बैंगन, गोभी व आलू के पकौड़ों के साथ साथ साबुत मिर्च वाले पकौड़ों की मांग खास तौर करते हैं।
शहर भर में सड़कों के किनारे जमीन पर तपड़ी बिछाकर मूंगफली रेवड़ी गजक बेच रहे यूपी व बिहार के फड़ी वालों की दुकानदारी भी खूब चमक रही है। शहर में रोजाना हजारों रूपए की मूंगफली व सूखे मेवे बिक रहे हैं। मुनक्के, खजूर व छुआरे तो रेहडिय़ों पर बिक रहे हैं जबकि काजू बादाम जैसे महंगे मेवे मिठाई व किराना की दुकानों पर मिलते हैं। छोटी मंडी के एक दुकानदार ने बताया कि छुआरा सस्ता भी है और सर्दी में बड़ा फायदेमंद भी होता है इसलिए सबसे ज्यादा छुआरों की सेल हो रही है। गुहला रोड की सब्जी की दुकानों पर विदेशी खजूर की खूब धूम है। महंगा है पर लोग स्वाद के चक्कर में महंगाई पर कोई ध्यान नहीं देते।
छोटी मंडी वाले बाजार का रूख किया तो किराने की ज्यादातर दुकानें बंद मिली। जो खुली थी उन पर भीड़ ना के बराबर थी। रेडीमेड गारमेंट वालों तकरीबन सभी दुकानों पर खूब लोग जुटे थे। किसी को गर्म जर्सी चाहिए। किसी को टोपी तो किसी को सर्दी में भी गर्मी के अहसास वाला थर्मोकोट।
मफलर की ज्यादा सेल नहीं
एक दुकानदार के नौकर से मंकी कैप के बारे में पूछा तो बोला कैसी मंकी कैप। जब उसे समझाया कि जैसी पुरानी भूतहा फिल्मों में लालटेन लिए चौकीदार ने पहनी होती थी। सिर से लेकर गर्दन तक की टोपी बीच में आंखों, नाक और मुंह के लिए थोड़े से खुले स्थान वाली टोपी। चर्चा सुनकर दुकान का मालिक पास आ गया और बोला कि बड़ों के साइज की तो नहीं है जी। बच्चों के साइज की पड़ी हैं। कहो तो दिखा दूं। एक दूसरी दुकान पर वैसे ही पूछ लिया कि मफलरों की कितनी कू सेल है इस बार तो दुकानदार ने बताया कि ज्यादा नहीं है। पिछले सीजन में जब केजरीवाल हिट हुए थे मफलर फैशन हो गया था। इस बार मफलर की कोई खास डिमांड नहीं है।
सोशल मीडिया पर छाई सर्दी
हुड्डा कालोनी नंबर एक की एक बेकरी शॉप पर खड़े नौजवानों से बात की तो उन्होंने बताया कि आज कल फेस बुक व व्हाट्सएप आदि पर सर्दी के ही चर्चे हैं। एक स्टेटस अपडेट देखिए 'दोस्तो आज समय है...रजाई का आविष्कार करने वाली महान आत्मा को शत शत नमन करने का। कसम से कमाल की चीज बनाई है।' एक फोटो व्हाट्सएप के गु्रपों में काफी घूम रही है जिसमें एक छोटा सा सरदार बच्चा हाथ जोड़कर आंखें बंद करके विनती करता नजर आता है। फोटो पर लिखा है कि बाबा जी...एसी थोड़ा स्लो करदो, थल्ले बच्चयां नूं बहुत ठंड लग रही ए।
एक सीरियस स्टेटस ये भी खूब शेअर हो रहा है-'आज जिन्हें टीवी पर पेशावर कांड देखकर इंसानियत याद आ रही है न, वे अपनी गली के बाहर सोते भीख मांगने वाले बच्चे को एक कंबल जरूर देकर आएं....सिर्फ आतंकवाद से ही लोग नहीं मरते।'