जहां जिंदा लोग बसते हैं वो घर अवैध नहीं हुआ करते
वैध कालोनी में घर ले नहीं सकते, अवैध में कोई रहने नहीं देता
-गुरविन्दर मितवा
'हमारी बस्ती को अवैध मत बोलिए साहब। यहां भी जिंदा लोग बसते हैं। बेशक गरीब हैं पर अपने हक हलाल की कमाई खाते हैं।' बुजुर्ग नराता राम बोलने लगता है तो जैसे छिड़ र्ही पड़ता है। ' हम नशे के कारोबारी नहीं हैं बाऊ जी। अफीम भुक्की दारू ड्रग्स हम नहीं बेचते। चोरी चकारी हम नहीं करते। डाका नहीं मारते, लूट नहीं करते। रिक्शा चलाते हैं, दिहाड़ी करते हैं, दुकानों पर छोटी मोटी नौकरियां करते हैं और अपने परिवार का पेट पालते हैं...फिर भी जो आता है कह देता है कि बस्ती अवैध है तुम्हारी।'-नराता राम का चेहरा गुस्से से लाल हो जाता है।
सरकारी हिसाब से 'अवैध' मानी जाने वाली मियां बस्ती सहित कुछ अन्य कालोनियों में जाकर लोगों का हाल जानने की कोशिश की तो वास्ता गुस्से और आक्रोश से पड़ा। इन कालोनियों की गलियां कच्ची हैं। सीवरेज तो दूर की बात, नालियां तक नहीं हैं। जगह जगह पानी खड़ा है। पानी पर मच्छरों के झुरमुट मंडराते हैं। इधर उधर जिधर खाली जगह नजर आती है, वहीं गंदगी के ढेर लगे पड़े हैं। लोग बताते हैं कि जिस भी महकमे में चले जाओ, अधिकारी यह कहकर टरका देते हैं कि आपकी कालोनी में कोई काम नहीं हो सकता, क्योंकि आपकी कालोनी अवैध है।
मियां बस्ती का पाला राम सवाल उठाता है कि अगर हमारी कालोनी अवैध है तो वोटें क्यों बनाई हैं हमारी। कोई भी चुनाव हो, नेता लोग आते हैं। लुभावने वादे करते हैं और वोटों की फसल काटकर चलते बनते हैं। बाद में कोई सुनवाई करने नहीं आता।
बाबा बस्ती का जसमेर बताता है कि उनकी कालोनी बसे तीस साल से ज्यादा वक्त हो गया, नगर पालिका उसे तो आज भी अवैध बताती है पर बाबा बस्ती के साथ सटे एक मुहल्ले को कालोनाइजरों ने अभी हाल ही में बसाया है, पालिका रिकार्ड में वह एप्रूवड एरिया करार दे दिया गया है। नगर पालिका ने दोनों के बीच में एक लंबी सारी दीवार खींचकर जैसे अमीरी और गरीबी के बीच एक दीवार खड़ी कर दी है। इसी बस्ती का संदीप कहता है कि बाबा बस्ती में चूंकि गरीब लोग बसते हैं इसलिए यह सवाल उठाने की शायद किसी में हिम्मत नहीं है कि आखिर आपने किस आधार पर बिल्कुल साथ साथ सटे दो मुहल्लों को वैध और अवैध करार दे दिया।
बेगा बस्ती का लीलू राम कहता है कि अगर हमारी कालोनी अवैध है तो कोई बात नहीं सरकार दिला दे ना हमें भी हूडा में प्लाट। हम तो वहां जाकर रह लेंगे। रेट पता है ना क्या है वहां पर। 25 से 30 हजार का एक गज। हूडा ना सही वकील कालोनी में दिला दो। वहां भी 20 हजार का गज है। और तो और हाऊसिंग बोर्ड कालोनी में भी कोई हाथ नहीं रखने देता। लीलू कहता है कि गरीबों को भी तो सिर ढकने के लिए जगह चाहिए कि नहीं। छोटी कालोनियों में 17 सौ से 35 सौ गज तक में आराम से जमीन मिल जाती है। बढिय़ा जगह खरीदने की औकात होती तो बिना कोई सुख सुविधा वाली कालोनी में क्यों धक्के खाते फिरते। हमें तो घर चाहिए। वैध में घर लेने की हमारी हैसियत नहीं, अवैध में आप हमें रहने नहीं देते तो बताइये कि जाएं तो कहां जाएं।
क्या हम नहीं हैं हकदार
बेगा बस्ती का कर्मचंद कहता है कि गांवों में तो सरकार ने गरीबों व दलितों को 100-100 गज के प्लाट काटकर दे दिए। क्या शहरी गरीब इस तरह की सुविधाओं के हकदार नहीं हैं। अवैध कही जाने वाली कालोनियों में ज्यादातर दलित परिवार बसें हैं। कर्मचंद कहते हैं कि सरकार गांवों में दलितों को मुफ्त जमीन दे सकती है हमें शहरी दलितों को अपने मुहल्लों में कम से कम उतनी सुविधाएं तो दे दे जितनी अन्य मुहल्लों में दी जा रही हैं।
वैध कालोनी में घर ले नहीं सकते, अवैध में कोई रहने नहीं देता
-गुरविन्दर मितवा
'हमारी बस्ती को अवैध मत बोलिए साहब। यहां भी जिंदा लोग बसते हैं। बेशक गरीब हैं पर अपने हक हलाल की कमाई खाते हैं।' बुजुर्ग नराता राम बोलने लगता है तो जैसे छिड़ र्ही पड़ता है। ' हम नशे के कारोबारी नहीं हैं बाऊ जी। अफीम भुक्की दारू ड्रग्स हम नहीं बेचते। चोरी चकारी हम नहीं करते। डाका नहीं मारते, लूट नहीं करते। रिक्शा चलाते हैं, दिहाड़ी करते हैं, दुकानों पर छोटी मोटी नौकरियां करते हैं और अपने परिवार का पेट पालते हैं...फिर भी जो आता है कह देता है कि बस्ती अवैध है तुम्हारी।'-नराता राम का चेहरा गुस्से से लाल हो जाता है।
सरकारी हिसाब से 'अवैध' मानी जाने वाली मियां बस्ती सहित कुछ अन्य कालोनियों में जाकर लोगों का हाल जानने की कोशिश की तो वास्ता गुस्से और आक्रोश से पड़ा। इन कालोनियों की गलियां कच्ची हैं। सीवरेज तो दूर की बात, नालियां तक नहीं हैं। जगह जगह पानी खड़ा है। पानी पर मच्छरों के झुरमुट मंडराते हैं। इधर उधर जिधर खाली जगह नजर आती है, वहीं गंदगी के ढेर लगे पड़े हैं। लोग बताते हैं कि जिस भी महकमे में चले जाओ, अधिकारी यह कहकर टरका देते हैं कि आपकी कालोनी में कोई काम नहीं हो सकता, क्योंकि आपकी कालोनी अवैध है।
मियां बस्ती का पाला राम सवाल उठाता है कि अगर हमारी कालोनी अवैध है तो वोटें क्यों बनाई हैं हमारी। कोई भी चुनाव हो, नेता लोग आते हैं। लुभावने वादे करते हैं और वोटों की फसल काटकर चलते बनते हैं। बाद में कोई सुनवाई करने नहीं आता।
बाबा बस्ती का जसमेर बताता है कि उनकी कालोनी बसे तीस साल से ज्यादा वक्त हो गया, नगर पालिका उसे तो आज भी अवैध बताती है पर बाबा बस्ती के साथ सटे एक मुहल्ले को कालोनाइजरों ने अभी हाल ही में बसाया है, पालिका रिकार्ड में वह एप्रूवड एरिया करार दे दिया गया है। नगर पालिका ने दोनों के बीच में एक लंबी सारी दीवार खींचकर जैसे अमीरी और गरीबी के बीच एक दीवार खड़ी कर दी है। इसी बस्ती का संदीप कहता है कि बाबा बस्ती में चूंकि गरीब लोग बसते हैं इसलिए यह सवाल उठाने की शायद किसी में हिम्मत नहीं है कि आखिर आपने किस आधार पर बिल्कुल साथ साथ सटे दो मुहल्लों को वैध और अवैध करार दे दिया।
बेगा बस्ती का लीलू राम कहता है कि अगर हमारी कालोनी अवैध है तो कोई बात नहीं सरकार दिला दे ना हमें भी हूडा में प्लाट। हम तो वहां जाकर रह लेंगे। रेट पता है ना क्या है वहां पर। 25 से 30 हजार का एक गज। हूडा ना सही वकील कालोनी में दिला दो। वहां भी 20 हजार का गज है। और तो और हाऊसिंग बोर्ड कालोनी में भी कोई हाथ नहीं रखने देता। लीलू कहता है कि गरीबों को भी तो सिर ढकने के लिए जगह चाहिए कि नहीं। छोटी कालोनियों में 17 सौ से 35 सौ गज तक में आराम से जमीन मिल जाती है। बढिय़ा जगह खरीदने की औकात होती तो बिना कोई सुख सुविधा वाली कालोनी में क्यों धक्के खाते फिरते। हमें तो घर चाहिए। वैध में घर लेने की हमारी हैसियत नहीं, अवैध में आप हमें रहने नहीं देते तो बताइये कि जाएं तो कहां जाएं।
क्या हम नहीं हैं हकदार
बेगा बस्ती का कर्मचंद कहता है कि गांवों में तो सरकार ने गरीबों व दलितों को 100-100 गज के प्लाट काटकर दे दिए। क्या शहरी गरीब इस तरह की सुविधाओं के हकदार नहीं हैं। अवैध कही जाने वाली कालोनियों में ज्यादातर दलित परिवार बसें हैं। कर्मचंद कहते हैं कि सरकार गांवों में दलितों को मुफ्त जमीन दे सकती है हमें शहरी दलितों को अपने मुहल्लों में कम से कम उतनी सुविधाएं तो दे दे जितनी अन्य मुहल्लों में दी जा रही हैं।

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